Wednesday 20 March 2013

ऐसा है कि…

*फिल्म: सोचा न था 

"मेरा ख्याल है कि अब हमें बच्चों को कुछ देर के लिए अकेला छोड़ देना चाहिए। क्या कहती हैं बहनजी?"
"जी हाँ, बिलकुल!"
कमरे में अब सिर्फ दो ही लोग बचे हैं- सुनीति : उम्र २८ साल, घर की सबसे बड़ी बेटी, सबसे ज्यादा ज़िम्मेदार और कमाऊ, सुशिक्षित, मध्यवर्गीय, दिखने में साधारण; विनय : उम्र ३२, साधारण कद-काठी, आय और शिक्षा।
बढती उम्र और पारिवारिक दबाव के मद्देनज़र सुनीति को इस रिश्ते के लिए हाँ करनी ही है, यह बात और है कि विनय उसके आगे कहीं नहीं ठहरता। सुनीति को अपने पंख खोलकर उड़ान भरना बहुत अच्छा लगता है लेकिन  स्त्री की जगह तो पिंजरे में ही है। उसे कुछ भी बोलने को मना किया गया है।
"आप नौकरी करती हैं, आपके तो कई पुरुष-मित्र भी होंगे?"
"जी, मगर उनसे सम्बन्ध पेशेवराना ही हैं।"
"कोई खास व्यक्ति आपके जीवन में?"
"जी नहीं।"
"चलिए, मैं अपनी बात करता हूँ। सिर्फ एक ही बुरी आदत है कि कभी-कभार पी लेता हूँ। अगर आपको परेशानी हो तो थोडा सह लीजियेगा। मुझे बच्चे भी अच्छे नहीं लगते, माफ़ी चाहता हूँ मगर उनकी ज़िम्मेदारी भी पूरी तरह आपको ही लेनी होगी। मेरे माता-पिता दिल से बहुत ही भले हैं, लेकिन कई बार गुस्सा संभाल नहीं पाते। ऐसे में, मैं चाहूँगा कि आप घर की बातें मुझे न ही बताएं। एक गर्लफ्रेंड थी, अब छोड़ चुका हूँ। हाँ, दोस्ती अब भी है। मेरे ख्याल से, सिर्फ दोस्ती से आपको कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। अब एक आखिरी बात, ऐसा कुछ नहीं है ज़िन्दगी में जो मैंने किया न हो।"
"आप बड़े ही ईमानदार व्यक्ति हैं।"
"अच्छी बात है कि आपने मुझे समझा। जहाँ तक मुझे लगता है, आपकी ओर से हाँ ही है। ये बात तो आपने बाहर सुन ही ली होगी कि हम आपसे नौकरी नहीं करवाएंगे, तो कल ही आप इस्तीफा दे दीजियेगा। कोई और बात जो आप बताना चाहें… "
"जी ऐसा है कि ऐसा कुछ नहीं है ज़िन्दगी में जो मैंने भी करना चाहा हो और किया न हो….."
विनय अवाक है, सुनीति के चेहरे पर हया की जगह गर्वीली मुस्कान है। विनय कमरे से बाहर जा चुका है।

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